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Discussion on Folk Music (Vol. II)
Content Provider | Internet Archive: Cultural Resources of India |
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Spatial Coverage | 2003-03-09 |
Description | डॉ सुनीरा कासलीवाल द्वारा लोक कलाकार से वार्ता। कलाकारा द्वारा अपना नाम रामलाल बताना साथ ही साथ अपने पिता व दादाजी का नाम बताना व अपने निवास का पता बताना। जन्तर वाद्य पर वार्ता - डॉ सुनीरा कासलीवाल द्वारा प्रश्न कलाकार से की आपके परिवार में यह वाद्य केसे आया। कलाकार द्वारा उत्तर दिया गया की यह वाद्य मेरे परिवार में करीब चार पांच पीढ़ी से बजा रहे हैं। जो हमारी पीढी में किसी को कोढ थी जो देव नारायण भगवान सपने में आकर यह कहा की तुम मेरी पड़ वाचों तो तुम्हारी कोढ ठीक हो जायेगी। डॉ सुनीरा कासलीवाल द्वारा लोक वाद्य ढोलक व तबला बनाने वाले कारीगर से वार्ता। कारीगर द्वारा जानकारी देना की गेहूवा चैवदा होते हैं जिसे सुर कहते हैं। मधुमखी का मेण। सरा - छाल जन्तु की चमड़ीं। बांस की लकड़ी , रोहिड़ा की लकड़ी, देसी बबूल की लकड़ी। 70 से 80 वर्ष पुराना हैं। वाद्य की जानकारी करी, नाळ, किल, गेहूवा, मोरणी, मेरू, तार। तार - अगुठीया साईड के दो तार, झारे पितल के , रागण मेण की बनी होती हैं। खुटी को पेरवा कहते हैं। अगुली को अगुटणा कहते हैं। मन्दिर - जिसमें देवनारायण की पुजा करते हैं। ढोलक बनाने वाले से वार्ता। डॉ सुनीरा कासलीवाल एवं श्री धन्नजय रुद्रा द्वारा कार्यशाला मे वार्ता जिसमें श्री धन्नजय रुद्रा द्वारा जानकारी की बिरीज के दो तार स्टील के होते हैं लोक वाद्य सारंगी मे। कमायचा - कमायचा को बनाने के लिए दो तरह की लकड़ी काम में ली जाती हैं आम की लकड़ी, शीशम की लकड़ी का उपयोग होता हैं। |
Access Restriction | Open |
Rights License | http://creativecommons.org/licenses/by-nc/4.0/ |
Subject Keyword | Folk Music |
Content Type | Video |