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Manganiyar Children Camp II (Vol. XXVIII)
Content Provider | Internet Archive: Cultural Resources of India |
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Spatial Coverage | 2009-09-02 |
Description | दिनांक 2 सितम्बर 2009 को इसी प्रकार प्रातः कालिन में शिविर में भाग लेने वाले बाल कलाकारों के साथ खुली चर्चा में ग्रामिण परिवेश में गीत सीखने एवं अपनी गायन परंपरा से जुड़े रहने के विशय पर विविध आयामी सार गर्भित बातचीत हुई जिसमें मांगनियारों लोक गायकी पर लंबा अनुभव रखने वाले मनोहर लालस एवं आई.एफ.ए. बैंगलोर से समागत सुमन्ना जी ने इस परिचर्चा में भाग लिया तथा धरातलिय स्तर पर मांगनियार लोक परंपरा को निरंतर बनाये रखने वाली मौखिक परंपरा पर आधुनिक युग में पड़ने वाले प्रभाव पर बातचित की । साथ ही परंपरागत वाद्य कमायचा एवं उसको सिखने वाले वरिश्ठ कलाकार के संदर्भ में बातचित की । इसमें अलग-अलग समूह के बाल कलाकारों के साथ उनके गायन एवं वादन कला के व्यक्तिगत निखार पर श्री कुलदीप कोठारी ने जब बातचीत की तब यह तथ्य उभर कर सामने आया कि शिविर में वही बाल कलाकार अच्छा प्रर्दशन कर सके जो मांगनियारों की गुरू शिष्य परंपरा से जुड़े हुए रहे। गुरू शिष्य परंपरा को लेकर श्री कुलदीप कोठारी ने वरिष्ठ कलाकार जनाब साकर खान मांगनियार, जनाब घेवर खान मांगनियार से विस्तृत बातचीत की तब यह स्पष्ट हुआ की वर्तमान में मांगनियारों की लोक परंपरा के ख्याती नाम कलाकार बचपन से ही अपनी गुरू शिष्य परंपरा से जुड़े हुए रहे। जिसमें स्वयं जनाब चानण खान मांगनियार ने अपने गुरू जो रिस्ते में उनके नाना भी थे का उदाहरण प्रस्तुत किया। सुमन्ना जी ने मौखिक परंपरा एवं यजमानी प्रथा को जोड़ते हुए बच्चों के सिखने की प्रक्रिया एवं याददाश्त के बारे में बातचीत की तब मनोहर लालस एवं वरिष्ठ लोक कलाकार जनाब हाकम खान मांगनियार ने बताया की वो अपनी माँ के साथ यजमानों के घर उत्सव में गाना सिखते है । यह उसकी प्रर्मिं कक्षा होती है क्योंकि मै स्वयं और मेरे साथ दूसरे वरिष्ठ कलाकार भी यजमानों के घर ही माँ के साथ गीत का अभ्यास प्रारम्भ किया है। मेरी प्रथम गुरू तो मेरी माँ है जिसके साथ यजमानों के यहा पकवान मिलने के लालसा में मैने ढोल पर प्रथम बार महिलाओं के गीत सीखे। यह हमारे मांगनियार लोक समाज की माने परंपरा सी बन गयी है । इस शिवीर में भाग लेने वाले लगभग सभी बाल कलाकारों ने परंपरागत गायन के साथ राग के दोहे, दोहों के प्रकार, दोहा देने की परंपरागत कला एवं परपंरागत साज कमायचे में रूची व्यक्त की है जो एक सुखद अनुभूति है । इस सत्र में साज एवं यादगीरी और सिखावट पर भी विचार विमर्ष हुआ जिसमे राग रागनिया, प्राचिन गीत, लोक देवता भटियानी के गीत एवं शादी ब्याव के अवसरों के गीत मुख्य रूप से सिखाने पर बल देने की बात सामने आयी क्योंकि यह प्रक्रिया उनको लोक परंपरा से जोड़े रखने के साथ उनके जीवन को सहज बनाने व धनार्जन में सहयोगी है । |
Access Restriction | Open |
Rights License | http://creativecommons.org/licenses/by-nc/4.0/ |
Subject Keyword | Folk Music |
Content Type | Video |